Shiv Bavni 2 of 52
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साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है ।
‘भूषण’ भनत नाद विहद नगारन के,
नदी नद मद गैबरन के रलत है ।।
ऐल फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल,
गजन की ठेल पेल सैल उसलत है ।
तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि,
थारा पर पारा पारावार यों हलत है ।

Saji chaturang veer rang mein turang chadhi,
Sarjaa Sivaji jang jeetan chalat hai.
‘Bhooshan’ bhanat naad vihad nagaaran ke,
Nadi nad mad gaibaran ke ralat hai.
Ail fail khail-bhail khalk mein gail gail,
Gajan ki thel pel sail uslat hai.
Taara so tarani dhuri dhara mein lagat jimi,
Thaara par para paraavaar yon halat hai.

मराठी अर्थ

साजि=सजावट करून. चतुरंग = चतुरंगिणी सैन्य म्हणजे हत्ती, घोडे, रथ आणि पायदळ. वीर रंग में = मोठ्या शौर्याने. तुरंग = घोडा. जंग = लढा. सरजा = सरेजाह (फारसी शब्द) ही मालोजीची पदवी होती जी त्यांना अहमदनगरच्या दरबारात देण्यात आली होती. सारेजाह म्हणजे सर्वशिरोमणि. भनत = म्हणतात. नाद = आवाज. विहद =  अत्यंत. गैबर = मद्यधुंद हत्ती. रजत हैं =आहेत . नदी नद ….. रलत हैं = म्हणजेच मद्यधुंद हत्तींच्या डोक्यावरून इतके मद्य त्यातून नद्या वाहत असल्याचे दिसून येते. ऐल = गर्दी, आवाज, आरडाओरडा. फैल=पसरण्यामुळे. खैल भैल= गोंधळ. गैल = मार्ग. गजन की ….. उसलत हैं = हे उंच हत्ती इतके शक्तिशाली असतात की त्यांच्या हालचालीमुळे डोंगराचा माथाही उन्मळून पडतो किंवा रस्त्यावर पडलेले दगडही मातीत मिसळतात. तरनि= सूर्य. पारा- वार = समुद्र. तारा ….. हलत है = अर्थात् शिवरायांचे सैन्य इतके असंख्य आणि शक्तिशाली आहे की त्याच्या चालण्याने आकाशात पसरलेल्या धुळीत प्रचंड सूर्य एखाद्या सामान्य ताऱ्याप्रमाणे चमकत राहतो.  ताटात ठेवलेला पारा ज्याप्रमाणे थरथरतो, त्याचप्रमाणे शिवरायांच्या सैन्याचा प्रचंड पराक्रम पाहून अमर्याद महासागर थरथरत असतो. म्हणजेच शिवाजींची अद्भुत दहशत जमीन, जल आणि आकाशात पसरलेली आहे.

हिंदी अर्थ

साजि=सजा कर । चतुरंग = चतुरंगिणी सेना अर्थात हाथी, घोड़े, रथ और पैदल | वीर रंग में = बडी बहादुरी के साथ। तुरंग = घोड़ा | जंग = लड़ाई | सरजा = सरेजाह (फ़ारसी शब्द) शिवाजी, यह मालोजी की उपाधि थी जो उन्हें अहमदनगर के दरबार में दी गई थी। सरेजाह का अर्थ है सर्वशिरोमणि । भनत = कहते हैं। नाद = आवाज़ । विहद =  बेहद । गैबर = मत्त हाथी । रजत हैं = मिल जाते हैं । नदी नद ….. रलत हैं = अर्थात मत्त हाथियों के मस्तकों से इतना मद निकल रहा है कि उससे नदियां बह निकली हैं । ऐल = भीड़, कोलाहल, चीख-पुकार । फैल=फैलने से । खैल भैल= खलबली | गैल=रास्ता । गजन की ….. उसलत हैं = दीर्घाकार हाथियों की इतनी ठेल – पेल है कि उनके चलने से पहाड़ों के भी प्रासन उखड़ जाते हैं अथवा मार्ग में प्राये हुए पत्थर भी मिट्टी में मिल जाते हैं । तरनि= सूर्य । पारा- वार = समुद्र । तारा ….. हलत है = अर्थात् शिवाजी की सेना इतनी अधिक तथा प्रबल है कि उसके चलने से जो धूल आसमान में छा जाती है उसमें विशाल सूर्य साधारण तारँई के समान झिलमिलाता रहता है। जिस प्रकार थाल में रक्खा हुआ पारा हिलता है उसी तरह शिवाजी की सेना का प्रचण्ड प्रताप देखकर असीम समुद्र डगमगायमान हो रहा है, अर्थात जल-थल – नभ सब पर शिवाजी का अद्भुत आतंक छाया हुआ है ।

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