Shiv Bavni 6 of 52
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बाजी गजराज सिवराज सैन साजत ही,
दिल्ली दिलगीर दसा दिरघ दुखन की।
तनीयाँ न तिलक सुथनियाँ पगनियाँ न,
घामै घुमरातीं छोड़ि सेजियाँ सुखन की।।
‘भूषन’ भनत पति बाँह बहियाँन तेऊ,
छहियाँ छबीली ताकि रहियाँ रुखन की।
बालियाँ बिथुरि जिमि आलियाँ निलन पर,
लालियाँ मलिन मुगलानियाँ मुखन की।।

Baji Gajaraj Sivraj Sain sajat hi,
Delhi dilgeer dasa diragh dukhan ki.
Taniyan na Tilak suthaniyan pagniyan na,
Ghaamai ghumraati chhodi sejiyan sukhna ki.
‘Bhushan’ bhanat pati baanh bahiyaan teou,
Chahiyan chabeeli taaki rahiyaan rukhna ki.
Baliyaan Bithuri jimi Aaliyaan nilan par,
Laaliyaan malin Mugalaniyaan mukhna ki.

मराठी शब्दार्थ:

बाजि= घोडा. गजराज = मोठे हत्ती. दिलगीर = (फ़ारसी) दुःखी. तनियाँ = भाषा. तिलक= एक प्रकारचा सैल कुर्ता. पगनियाँ = बूट, पन्हाई. सुथनियाँ = पायजमा. घामै = उन्हात. घुमरात = ती घाबरून पळून जाते. रूख = झाड.पतिबांह…… रुखन की = ज्या नवविवाहित जोडप्यांना अद्याप आपल्या पतीला मिठी मारण्याची संधी मिळाली नाही किंवा ज्यांना आपल्या पतीपासून कधीही वेगळे केले गेले नाही ते आपले घर, वाडे आणि सुखसोयी सोडून प्रौढत्वापर्यंत झाडांच्या सावलीत लपून फिरतात. नलिन= कमळ. लालियाँ = मथळा, सौंदर्य. बालियां……मुखन की = मुघल स्त्रिया इतक्या व्यथित होत आहेत की त्यांना केसांची वेणी घालण्याचीही संधी मिळत नाही. त्याच्या चेहऱ्यावर ही काळी कुलूपं लोटतात तशी लटकलेली असतात. भीतीमुळे चेहऱ्यावर लालसरपणा दिसत नाही. सुरक्षित आणि भक्कम ठिकाणी राहणाऱ्या शत्रू स्त्रियांची अशी वाईट अवस्था आहे.

हिंदी शब्दार्थ:

बाजि= घोड़ा । गजराज = बड़े बड़े हाथी । दिलगीर = (फ़ारसी) दुखी, रंजीदा । तनियाँ = बोली । तिलक= एक तरह का ढीला ढाला कुर्ता | पगनियाँ = जूतियाँ, पन्हइयाँ । सुथनियाँ = पायजामा । घामै = घाम में, धूप में | घुमरात = घबरा कर भागती फिरती हैं । रूख =पेड़ । पतिबांह…… रुखन की = जिन नवेली अलबेलियों को अभी पति की भुजाओं से लिपटने का सौभाग्य भी प्राप्त नहीं हुआ अथवा जो पतियों की बाहों से कभी बही या अलग नहीं हुई वे नवोढायें तक घर-महल तथा सुख-सेज छोड़कर पेड़ों की छाया में जान छिपाती फिरती हैं। अलियाँ = भौरियाँ । नलिन= कमल । लालियाँ = सुर्खी, सुन्दरता । बालियां……मुखन की = मुगलों की स्त्रियाँ ऐसी व्याकुल हो रही हैं कि उन्हें अपने सिरों के बालों को गुँथवाने तक का मौका नहीं मिलता। उनके मुख-मण्डल पर ये काली लटें उसी प्रकार लटक रही हैं जिस प्रकार भौरियाँ कमल पर भिनभिनाया करती है। डर के मारे चहरों पर लालिमा तो दिखायी ही नहीं देती। सुरक्षित तथा सुदृढ स्थानों में रहने वाली शत्रुस्त्रीयों का ऐसा बुरा हाल है । 

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